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सजा के रूप में स्थानांतरण आदेश अवैध है

स्थानांतरण से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय के तहत कहा कि सजा के रूप में दुर्भावनापूर्ण स्थानांतरण आदेश अवैध है एवं रद्द किया जा सकता है। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश मनीष कुमार ने कर्मचारी के स्थानांतरण को दुर्भावनापूर्ण माना ।

न्यायालय ने कहा कि स्थानांतरण आदेश एक प्रशासनिक आदेश है और इसे सामान्यतः कर्मचारियों की सेवा की एक घटना माना जाएगा । इसका मतलब है कि इसे केवल तभी रद्द किया जा सकता है जब यह दुर्भावना के आधार पर जारी किया गया हो। न्यायालय ने कहा कि स्थानांतरण आदेश को सजा के रूप में या उसके बदले में पारित नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह कर्मचारियों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।

दुर्भावनापूर्ण स्थानांतरण आदेश रद्द किया जा सकता है

याचिकाकर्ता आफताब अहसान उस्मानी द्वारा स्वास्थ्य महानिदेशालय के स्थानांतरण आदेश दिनांक 30.06.2023 से आहत होकर जिसके तहत डेंटल हाईजिनिस्ट पद पर कार्यरत याचिकाकर्ता को जिला-श्रावस्ती से जिला-सोनभद्र में स्थानांतरित कर दिया गया था को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने इस अवैध स्थानांतरण आदेश के विरुद्ध याचिका दायर की थी, जिसे 10.10.2023 के आदेश के माध्यम से निपटाया गया था, जिसमें विपक्षी पक्षों को याचिकाकर्ता के प्रत्यावेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया गया था।

विपक्षी पक्ष द्वारा याचिकाकर्ता के प्रत्यावेदन पर 02.11.2023 को आक्षेपित आदेश जारी कर उसके अभ्यावेदन को अस्वीकार करते हुए पारित किया गया था ।

याचिकाकर्ता आफताब अहसान उस्मानी ,डेंटल हाईजिनिस्ट के वकील ने महानिदेशक , चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के दिनाँक 02.11.2023 के आक्षेपित आदेश का हवाला देते हुए कहा कि विपक्षी पक्षों ने इस तथ्य को स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया है कि याचिकाकर्ता को दंड के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया है क्योंकि याचिकाकर्ता के खिलाफ की गई शिकायतें स्थापित पाई गईं।

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सरकारी वकील ने प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता पिछले 30 वर्षों से अधिक समय से श्रावस्ती में तैनात है और इसलिए, प्रशासनिक आधार पर स्थानांतरित कर दिया गया है, लेकिन महानिदेशक के दिनांक 02.11.2023 के आक्षेपित आदेश के पैराग्राफ 2 में दिए गए निष्कर्ष का बचाव करने में असमर्थ है। उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता का कार्य एवं आचरण संतोषजनक नहीं होने के कारण प्रमुख सचिव के निर्देश पर उनका स्थानांतरण किया गया है।

न्यायाधीश मनीष कुमार ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री के साथ-साथ दिनांक 02.11.2023 के आक्षेपित आदेश का अवलोकन करने पर पाया कि विपक्षी पक्षों ने स्वीकार किया है कि याचिकाकर्ता को उनके खिलाफ की गई शिकायतों के तौर पर दंड के माध्यम से स्थानांतरित किया गया है।

स्थानांतरण आदेश एक प्रशासनिक आदेश।

उच्च न्यायालय ने माननीय उच्चतम न्यायालय के सोमेश तिवारी बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में पहले ही यह माना है कि स्थानांतरण जो आम तौर पर सेवा की एक घटना है, अगर इसे सजा के रूप में पारित किया गया है तो इसमें हस्तक्षेप किया जा सकता है।

स्थानांतरण सेवा की सामान्यतः घटना , केवल दुर्भावनापूर्ण मामलों में हस्तक्षेप ।

सोमेश तिवारी के मामले में उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश के प्रासंगिक पैराग्राफ नं. 16 इस प्रकार हैं:-

“16. निर्विवाद रूप से स्थानांतरण का आदेश एक प्रशासनिक आदेश है। इसमें किसी भी प्रकार का संदेह नहीं हो सकता है कि स्थानांतरण, जो कि सामान्यतः सेवा की एक घटना है, में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए, सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहां अन्य बातों के साथ-साथ दुर्भावनापूर्ण संबंध हो अधिकार का भाग सिद्ध हो गया है। दुर्भावना दो प्रकार की होती है? एक वास्तव में द्वेष और दूसरा कानून में द्वेष। विचाराधीन आदेश कानून में द्वेष के सिद्धांत को आकर्षित करेगा क्योंकि यह पारित करने के लिए किसी भी कारक पर आधारित नहीं था ।

स्थानांतरण का आदेश और एक अप्रासंगिक आधार पर आधारित, यानी अनाम शिकायत में अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर यह कहना एक बात है कि नियोक्ता प्रशासनिक अत्यावश्यकताओं में स्थानांतरण का आदेश पारित करने का हकदार है, लेकिन यह कहना दूसरी बात है कि स्थानांतरण का आदेश सजा के रूप में या उसके बदले में पारित किया जाता है। जब स्थानांतरण का आदेश सजा के बदले में पारित किया जाता है, तो वह पूरी तरह से अवैध होने के कारण रद्द किया जा सकता है।

नियोक्ता प्रशासनिक अत्यावश्यकताओं में स्थानांतरण का आदेश पारित करने का हकदार । लेकिन स्थानांतरण का आदेश सजा के रूप में या उसके बदले नहीं ।

“16. Indisputably an order of transfer is an administrative order. There cannot be any doubt whatsoever that transfer, which is ordinarily an incident of service should not be interfered with, save in cases where inter alia mala fide on the part of the authority is proved. Mala fide is of two kinds?one malice in fact and the second malice in law. “

The order in question would attract the principle of malice in law as it was not based on any factor germane for passing an order of transfer and based on an irrelevant ground i.e. on the allegations made against the appellant in the anonymous complaint. It is one thing to say that the employer is entitled to pass an order of transfer in administrative exigencies but it is another thing to say that the order of transfer is passed by way of or in lieu of punishment. When an order of transfer is passed in lieu of punishment, the same is liable to be set aside being wholly illegal.”

विचाराधीन आदेश कानून में द्वेष के सिद्धांत को आकर्षित करेगा क्योंकि यह पारित करने के लिए किसी भी कारक पर आधारित नहीं था स्थानांतरण का आदेश और एक अप्रासंगिक आधार पर आधारित, यानी अनाम शिकायत में अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर आधारित था।

न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ शिकायतें स्थापित होने पर दंड के माध्यम से स्थानांतरित कर दिया गया था अतः महानिदेशक के दिनांक 30.06.2023 और 02.11.2023 के आक्षेपित आदेश रद्द कर दिए गया ।

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