हाईकोर्ट ने कहा है कि किसी अनूसूचित जाति के भूमिधर की जमीन खरीदने से पहले नियमानुसार जिलाधिकारी से अनुमति लेना अनिवार्य है, भले ही जमीन खरीदने वाला स्वयं अनुसूचित जाति का सदस्य क्यों न हो। कोर्ट ने इस मामले में याची के गरीब होने और कानून की जानकारी न होने पर समानता का लाभ देने से भी इनकार कर दिया है।
अनुसूचित जाति के रामलाल की याचिका खारिज करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्र ने दिया है। याची राम जी लाल ने अपने गांव में एक अन्य अनुसूचित जाति के व्यक्ति से उसकी दो कृषि भूमि खरीदीं थीं। बेचने वाले को यह जमीन ग्राम सभा से आवंटित की गई थी, जिस पर उसे स्थानांतरणीय भूमिधरी का अधिकार प्राप्त था।
याची की सेल डीड यह कहते हुए खारिज कर दी गई कि उसने जमींदारी विनाश एवं भूमि सुधार अधिनियम की धारा 157 ए के तहत अनुसूचित जाति की भूमि खरीदने से पूर्व आवश्यक अनुमति प्राप्त नहीं की थी। उसकी सेल डीड खारिज कर जमीन राज्य सरकार में समाहित कर ली गई। इसके खिलाफ एडीएम वित्त और कमिश्नर ने उसकी अपील व निगरानी खारिज कर दी, जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
याची के अधिवक्ता की दलील थी कि याची स्वयं अनुसूचित जाति का है, इसलिए एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति को दूसरे अनुसूचित जाति के व्यक्ति की जमीन खरीदने के लिए पूर्व अनुमति लेना आवश्यक नहीं है। अधिवक्ता का यह भी कहना था कि याची की सेल डीड रद्द कर जमीन राज्य सरकार में भले ही समाहित कर ली गई है, मगर जमीन पर वास्तविक कब्जा अभी भी याची का ही है।
याची गरीब भूमि हीन व्यक्ति है और उसे कानून की जानकारी नहीं है, इसलिए उसे इक्विटी का लाभ दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि कानून की जानकारी न होना कोई बचाव नहीं हो सकता है। कानून में ऐसा कोई उपबंध नहीं है, जिससे यह कहा जा सके कि अनुसूचित जाति के व्यक्ति की जमीन खरीदने के लिए अनुसूचित जाति के क्रेता को अनुमति आवश्यक नहीं है।