आचरण नियमावली
लोक सेवकों से कर्तव्यपरायण, ईमानदार, अनुशासित एवं चरित्रवान होना अपेक्षित है। प्रत्येक सरकारी सेवक के आचरण से शासन की छवि प्रतिबिंबित होती है क्योंकि सरकार एवं कर्मचारी के बीच स्वामी और सेवक का सम्बन्ध होता है। स्वामी द्वारा अपने सेवकों से यह अपेक्षा किया जाना स्वाभाविक है कि सेवक अपने कार्य एवं व्यवहार इस प्रकार व्यवहृत करें कि उससे स्वामी की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। सेवकों का कोई भी दुराकरण सरकार की छवि को धूमिल कर सकता है। अत: संविधान के अनुच्छेद 309 के अन्तर्गत प्रदत्त अधिकार का प्रयोग करते हुए श्री राज्यपाल अपने सेवकों को जनता के प्रति कर्तव्यों के निर्वहन करने में आचरण विनियमन करने के लिये आचरण नियमावली का निर्माण करते हैं।
इस लेख के अध्ययन के उपरान्त राज्य कार्मिकों को आचरण नियमावली के महत्वपूर्ण नियमों की जानकारी तथा इस दिशा में उनके कर्तव्यों के संबंध में जानकारी हो सकेगी। वह अपने अधीनस्थ कार्मिकों को इन नियमों के सम्बन्ध में समुचित जानकारी देकर उनका मार्गदर्शन कर सकेंगे।
प्रस्तुत लेख में उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली के नियमों की जानकारी देने का प्रयास किया गया है।
उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956
नियम 1 – संक्षिप्त नाम – ये नियम उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली 1956 कहलाएगें।
नियम 2 – परिभाषाएँ – जब तक प्रसंग से कोई अन्य अर्थ अपेक्षित न हो, इन नियमों में –
- सरकार से तात्पर्य उत्तर प्रदेश सरकार से है।
- सरकारी सेवक से तात्पर्य उस व्यक्ति से है, उत्तर प्रदेश राज्य के कार्यों के सम्बद्ध लोक सेवाओं और पदों पर नियुक्त हो।
व्याख्या :- इस बात को ध्यान में रखना होगा कि ऐसा सरकारी कर्मचारी किसी विशेष समय से किसी कम्पनी, निगम, संगठन, स्थानीय प्राधिकारी, केन्द्र सरकार या किसी अन्य राज्य सरकार में प्रति-नियुक्ति पर हो अथवा उसकी सेवा कुछ समय के लिये उस राज्य को अर्पित कर दी गयी हो, उस अवस्था में भी वह उत्तर प्रदेश के सरकारी कर्मचारी की परिभाषा के अन्तर्गत ही आयेगा।
- परिवार के सदस्य के अंतर्गत सरकारी सेवक की पत्नी, उसका लड़का, सौतेला लड़का, अविवाहित लड़की या अविवाहित सौतेली लड़की चाहे वह उसके साथ निवास करती हो या नहीं, और महिला सेवक के संबंध में उसके साथ रहने वाला उस पर आश्रित उसका पति।
व्याख्या :- उपरोक्त में से वही परिवार के सदस्य होंगे जो सरकारी कर्मचारी पर आश्रित हों। यह उल्लेखनीय है कि परिवार का सदस्य होने के लिये आयु महत्वपूर्ण नहीं है। उदाहरण के लिये यदि किसी सरकारी सेवक के पुत्र की आयु 24 वर्ष है तथा वह अभी शिक्षा प्राप्त कर रहा है, वह इसके लिये अपने पिता पर आश्रित है तो वह परिवार का सदस्य है। पर यदि वह कहीं सेवा में है या उसका अपना व्यापार है तथा भरण पोषण के लिये सरकारी सेवक पर आश्रित* नहीं है तो परिवार का सदस्य नहीं माना जायेगा।
*सरकारी सेवक पर आश्रित :-
ऊपर स्पष्ट किया गया है कि जो भी सदस्य सरकारी सेवक पर आश्रित होगा वही परिवार का सदस्य माना जायेगा। उपरोक्त परिभाषा के सम्बन्ध में यह बताना भी उचित होगा कि ऐसी पत्नी या पति परिवार के सदस्य नहीं माने जायेंगे जो वैध रूप से सरकारी सेवक के परिवार से अलग हो गये हों अथवा ऐसे पुत्र, सौतेले पुत्र, अविवाहित पुत्री या सौतेली पुत्री भी परिवार के सदस्य नहीं होंगे, जो सरकारी सेवक पर अब किसी भी प्रकार से आश्रित नहीं है या जिनकी अभिरक्षा से विधिक रूप से सरकारी सेवक द्वारा बेदखल कर दिया गया हो।
इस सन्दर्भ में ‘आश्रित’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करना आवश्यक है। आश्रित का अर्थ किसी ऐसे व्यक्ति से है जो सरकारी सेवक पर भरण पोषण या जीवन यापन के लिये पूर्ण रूप से निर्भर हो। परिवार के सदस्यों के संदर्भ में जिनके आचरण के लिये सरकारी सेवक जिम्मेदार हो, उनका अपने भरण पोषण के लिये सरकारी सेवक पर आश्रित होना आवश्यक है।
नियम 3 में कहा गया है कि
- प्रत्येक सरकारी सेवक पूरे समय परम सत्यनिष्ठा तथा कर्तव्य परायणता से कार्य करता रहेगा।
- प्रत्येक सरकारी सेवक पूरे समय व्यवहार तथा आचरण विनियमित करने वाले विशिष्ट या अन्तनिर्हित शासकीय आदेशों के अनुसार आचरण करेगा।
वस्तुत: सरकारी सेवक आचरण नियमावली का नियम-3 सबसे महत्वपूर्ण तथा सारगर्भित है। इस नियम में प्रयुक्त किये गये कुछ बिन्दुओं पर विश्लेषण आवश्यक है।
पूर्ण सत्यनिष्ठा का अर्थ सच्चाई, ईमानादारी एवं शुद्धता है। यदि किसी सरकारी सेवक से पूर्ण सत्यनिष्ठा बनाये रखने की अपेक्षा की जाय तो यह कहा जायेगा कि वह अपने को उस प्रशासकीय शिष्टता के घेरे में रखे जिसे सभ्य प्रशासन कहा जाता है। घूस लेना या अवैध पारितोषिक की माँग करना, अपनी आय के अनुपात से अधिक की सम्पत्ति क्रय करना या गलत लेखा तैयार करना, दुर्विनियोजन करना, गलत व्यक्ति को प्रोत्साहित करना आदि कुछ ऐसे उदाहरण है, जो सत्यनिष्ठा के विपरीत हैं।
कर्तव्य परायणता की परिभाषा सेवा के प्रति पूर्ण निष्ठा से सम्बन्धित है। ऐसा सरकारी कार्मिक जो कर्तव्य के प्रति समर्पित नहीं है, दुराचरण का दोषी है। वास्तव में सत्यनिष्ठा व कर्तव्य परायणता एक ही के प्रतिरूप हैं, जिनका एक-दूसरे के बगैर अस्तित्व नहीं है।
विशिष्ट आदेश
शासन द्वारा समय-समय पर जारी किये गये वैधानिक आदेश हैं। हर सरकारी सेवक चाहे वह अस्थाई हो अथवा स्थाई या अन्य किसी प्रक्रिया द्वारा नियोजित हो, को ऐसे आदेशों का अनुपालन करना आवश्यक है।
अन्तर्निहित शासकीय आदेश
जारी किये गये आदेशों के अतिरिक्त कुछ अलिखित आचरण संहिता भी है। अलिखित आचरण संहिता के अर्थ सर्वत्र मान्य ऐसे आचरण से है, जिसका पालन सरकारी सेवक के लिये आवश्यक है। उदाहरण के लिये सरकारी सेवक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह शालीनता की मर्यादा में रहे। वह आज्ञाकारी, निष्ठावान, सावधान, ईमानदार, समय का ध्यान रखने वाला, अच्छे व्यवहार करने वाला व अपने कार्य के निष्पादन में दक्ष हो।
यदि सरकारी सेवक सत्यनिष्ठा व कर्तव्य परायण नहीं है, यदि वह विशिष्ट या ध्वनित आदेशों का अनुपालन नहीं करता है तो उसका कृत्य दुराचरण की श्रेणी में आयेगा। यह भी ध्यान रखे जाने की बात है कि दुराचरण केवल सरकारी कार्य से ही संबंधित नहीं है। निजी जीवन का आचरण भी दुराचरण हो सकता है। यदि कोई कार्मिक अपने निजी जीवन में कोई ऐसा कृत्य करता है जो सरकारी सेवा के समय नहीं किया गया है तथा वह कृत्य अनैतिक है, तो भी उसका कृत्य दुराचरण की श्रेणी में आयेगा। वस्तुत: राज्य अपने कार्मिकों से आचरण के कतिपय मानक की अपेक्षा न केवल कर्मचारियों के सरकारी कार्यो वरन निजी जीवन में भी कर सकता है।
वर्ष के अन्त में सरकारी कर्मचारियों की गोपनीय प्रविष्टि के साथ-2 सत्यनिष्ठा पर भी रिपोर्ट दी जाती है, जिसका रूप-पत्र निम्नवत् है :-
‘ईमानदारी के लिये श्री ————— की ख्याति अच्छी है और मेरी जानकारी में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे श्री ————– की सत्यनिष्ठा पर संदेह किया जा सके अत: उनकी सत्यनिष्ठा प्रमाणित।’
नियम 3-क कामकाजी महिलाओं के यौन उत्पीड़न का प्रतिषेध –
(1) कोई सरकारी सेवक किसी महिला के कार्यस्थल पर उसके यौन उत्पीड़न के किसी कार्य में संलिप्त नहीं होगा।
(2) प्रत्येक सरकारी सेवक जो किसी कार्य स्थल का प्रभारी हो, उस कार्यस्थल पर किसी महिला के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिये उपयुक्त कदम उठायेगा।
स्पष्टीकरण- इस नियम के लिये ‘यौन उत्पीड़न’ में प्रत्यक्षत: या अन्यथा काम वासना प्रेरित कोई ऐसा अशोभनीय व्यवहार सम्मिलित है जो कि-
(क) शारीरिक स्पर्श और कामोदीप्त सम्बन्धी चेष्टाएँ,
(ख) यौन स्वीकृति की माँग या प्रार्थना,
(ग) काम वासना-प्रेरित फब्तियाँ,
(घ) किसी कामोत्तेजक कार्य व्यवहार या सामग्री का प्रदर्शन या
(ङ) यौन सम्बन्धी कोई अन्य अशोभनीय शारीरिक, मौखिक या सांकेतिक आचरण।
नियम 4- सभी लोगों के साथ समान व्यवहार
(क) प्रत्येक सरकारी सेवक, सभी लोगों के साथ, चाहे वे किसी भी जाति, पंथ या धर्म के क्यों न हों, समान व्यवहार करेगा।
(ख) कोई भी सरकारी सेवक किसी भी रूप में अस्पृश्यता का आचरण नहीं करेगा।
नियम 4-क मादकपान और औषधि का सेवन
यह नियम सरकारी कर्मचारियों के मादकपान और औषधि के सेवन के संबंध में है। इस नियम के निम्न तथ्य महत्वपूर्ण हैं :-
- किसी भी क्षेत्र जहाँ वह उस समय विद्यमान हो मादकपान अथवा औषधि सम्बन्धी जारी किसी भी आदेश का दृढ़ता से पालन करेगा।
- अपने कर्तव्य पालन के दौरान किसी मादक पान या औषधि से प्रभावित नहीं होगा और इस बात का ध्यान रखेगा कि वह किसी भी समय अपने कर्तव्य पालन में ऐसे पेय अथवा भेषज से प्रभावित नहीं होता है।
- सार्वजनिक स्थानों में किसी मादक पान अथवा औषधि के सेवन से अपने को विरत रखेगा।
- मादक पान करके किसी सार्वजनिक स्थान पर उपस्थित नहीं होगा।
- किसी भी मादकपान या औषधि का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में नहीं करेगा।
कुछ विशेष स्थानों को जैसे तीर्थस्थल अयोध्या आदि को मद्यनिषेध क्षेत्र घोषित किया गया है। वहाँ पर कोई भी व्यक्ति मादकपान नहीं कर सकता है। सरकारी सेवक भी यदि ऐसे स्थानों पर जायें तो उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह इन नियमों का दृढ़ता से पालन करें। इसके अतिरिक्त जैसा कि नियम में कहा गया है कि कोई सरकारी सेवक न तो किसी सार्वजनिक स्थान पर मदिरा पान करेगा, न ही अत्यधिक मात्रा में मादकपान करेगा। कभी-कभी कतिपय सरकारी सेवक इस नियम का अनुपालन करने में लापरवाही बरतते हैं। ऐसे अपवाद स्वरूप उदाहरण है कि सेवक कार्यालयों तक में नशे की हालत में आते हैं, इससे उनके कार्य करने की क्षमता तो घटती ही है, सरकार की छवि भी खराब होती है, साथ ही साथ ऐसे सरकारी सेवक जो मादकपान कर सार्वजनिक स्थानों पर या कार्यालयों में जाते हैं, ऐसी बात कह बैठते हैं, जिसकी उनसे अपेक्षा नहीं की जाती है। यह भी सम्भव है कि वह ऐसे अवसरों पर गोपनीय बात भी सबके सामने कह दें। अत: अन्य नियमों की भाँति इस नियम का अनुपालन सभी कर्मचारियों के लिये आवश्यक है।
नियम 5 – राजनीति तथा चुनावों में भाग लेना
इस नियम को दो भागों में बाँटा जा सकता है। नियम का पहला भाग सरकारी कर्मचारियों के लिये लागू है, तथा दूसरा भाग उसके परिवार के सदस्यों के लिये है।
पहले भाग में कहा गया है कि
(अ) कोई सरकारी सेवक किसी राजनीतिक दल अथवा किसी ऐसी संस्था जो राजनीति में भाग लेती है का न तो सदस्य होगा और न अन्यथा उससे सम्बन्ध रखेगा।
(ब) वह किसी ऐसे आन्दोलन में या संस्था में हिस्सा नहीं लेगा, न उसकी सहायता के लिये चन्दा देगा या किसी रीति से उसकी मदद ही करेगा जो प्रत्यक्ष रूप से सरकार के प्रति विद्रोहात्मक कार्यवाहियाँ करने की प्रवृत्ति पैदा करें।
उपरोक्त का अर्थ है सरकारी सेवक न तो किसी राजनैतिक दल से संबंधित रहेगा और न ही ऐसी संस्था से, जो स्थापित सरकार के प्रति विद्रोह पैदा करवाने के लिये कार्य में संलग्न हो।
सरकारी सेवक विधान मण्डल के किसी सदन अथवा स्थानीय निकाय के चुनावों में न तो भाग लेगा और न हस्तक्षेप करेगा और न ही उसके सम्बन्ध में अपने प्रभाव का प्रयोग करेगा।
परन्तु सरकारी सेवक, जो किसी चुनाव में वोट डालने का अधिकारी है, वोट डालने हेतु अपने अधिकार का प्रयोग अवश्य कर सकेगा लेकिन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यह संसूचित नहीं करेगा कि उसने किसे वोट दिया है। इस कार्य के लिये वह अपने शरीर, सम्पत्ति अथवा निवास स्थान पर कोई चुनाव चिन्ह का प्रदर्शन नहीं करेगा चाहे वह विकास कार्यों से संबंधित हो या अन्य किसी प्रकार।
नियम का द्वितीय भाग सरकारी कर्मचारियों के परिवार के सदस्यों के सम्बन्ध में भी लागू है। सरकारी सेवक के परिवार के सदस्यों के लिये राजनीति में भाग लेने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है।
प्रत्येक सरकारी सेवक का यह कर्तव्य होगा कि वह अपने परिवार के सदस्य को किसी ऐसे आन्दोलन में एवम् कार्य में जो विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति उच्छेदक है अथवा ऐसे कार्य करने की प्रवृत्ति प्रदान करते हैं, में हिस्सा लेना, चन्दा देने या किसी भी अन्य विधि से उसकी मदद करने से रोकने का प्रयास करेगा। यदि सरकारी सेवक ऐसा करने में असफल रहता है तो वह इन समस्त तथ्यों की जानकारी राज्य सरकार को देगा।
नियम 5-क प्रदर्शन एवं हड़ताल
प्रदर्शन
सरकारी कर्मचारियों के लिये प्रदर्शन में रूकावट नहीं है, लेकिन वह ऐसा प्रदर्शन नहीं करेगा अथवा ऐसे प्रदर्शन में सम्मिलित नहीं होगा, जो भारत राष्ट्र की अखण्डता, प्रभुता एवं सुरक्षा के प्रतिकूल हो, जो भद्रता या नैतिक/मर्यादित आचरण के प्रतिकूल हो, स्थापित विधिक व्यवस्था के प्रतिकूल हो, शिष्टाचार या सदाचार के विरूद्ध हो, मा0 न्यायालयों की अवमानना तथा मानहानि करते हों, अपराध करने के लिये प्रेरित करते हों, विशेषकर विदेशी सरकार से मित्रता से संबंधित रिश्तों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हो।
हड़ताल
सरकारी सेवक अपनी सेवा या किसी अन्य सरकारी सेवक की सेवा से संबंधित मामले में न तो हड़ताल करेंगें और न हड़ताल करने के लिये उत्प्रेरित करेंगे।
शासन द्वारा समय-समय पर इस बात को स्पष्ट किया गया है कि काई भी सरकारी सेवक हड़ताल पर जाते हैं, तो उनके विरूद्ध इस नियम की अवहेलना के लिये कार्यवाही की जाये।
नियम 5-ख सरकारी कर्मचारियों का संघों का सदस्य बनना
कोई सरकारी सेवक किसी ऐसे संघ का न तो सदस्य बनेगा और न उसका सदस्य बना रहेगा, जिसके उद्देश्य अथवा कार्य-कलाप भारत की प्रभुता तथा अखण्डता के हितों या सार्वजनिक सुव्यवस्था अथवा नैतिकता के प्रतिकूल हो।
नियम 6- समाचार पत्रों अथवा रेडियो से सम्बन्ध
कोई सरकारी सेवक बिना शासन की पूर्वानुमति के किसी समाचार पत्र अथवा अन्य नियतकालिक प्रकाशन का पूर्णत: अथवा अंशत: स्वामी नहीं बनेगा और न संचालन करेगा और न ही उसके सम्पादन या प्रबंधन में भाग लेगा। इसी प्रकार कोई सरकारी सेवक रेडियो प्रसारण में भाग नहीं लेगा अथवा किसी समाचार पत्र, पत्रिका में लेख नहीं भेजेगा, न ही गुमनाम या अपने नाम से अथवा किसी अन्य व्यक्ति के नाम से। यह नियम केवल उस स्थिति में नहीं लागू होंगे यदि सरकारी सेवक का प्रसारण एवम् लेख का स्वरूप साहित्यिक, कलात्मक अथवा वैज्ञानिक हो। ऐसे मामलों में किसी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होगी।
इसी प्रकार प्रेस से वार्ता के संबंध में शासकीय अनुदेश जारी किये गये हैं।
नियम 7- सरकार की आलोचना
कोई भी सरकारी सेवक किसी रेडियो प्रसारण में अपने नाम से अथवा गुमनाम अथवा किसी अन्य नाम से किसी लेख अथवा समाचार पत्र में भेजे गये पत्र अथवा किसी सार्वजनिक स्थान में कोई ऐसे तथ्य की बात या मत व्यक्त नहीं करेगा –
1- जिससे वरिष्ठ पदाधिकारियों के किसी निर्णय की प्रतिकूल आलोचना होती हो, उत्तर प्रदेश सरकार, केन्द्र सरकार अथवा अन्य राज्य सरकार अथवा किसी स्थानीय प्राधिकारी की किसी नीति या कार्य की प्रतिकूल आलोचना होती हो अथवा
2- जिससे उत्तर प्रदेश सरकार अथवा केन्द्र सरकार अथवा किसी राज्य सरकार के तथा विदेशी सरकार के सम्बन्धों में उलझन पैदा हो सकती हो।
नियम 8- किसी समिति या अन्य प्राधिकारी के समक्ष साक्ष्य
1- उप नियम 3 में उपबन्धित स्थिति के अतिरिक्त, कोई सरकारी सेवक, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी व्यक्ति, समिति या प्राधिकारी द्वारा संचालित किसी जाँच के सम्बन्ध में साक्ष्य नही देगा।
2- उस दशा में, जबकि उप नियम 1 के अन्तर्गत कोई स्वीकृति प्रदान की गई हो, कोई सरकारी कर्मचारी, इस प्रकार के साक्ष्य देते समय, उत्तर प्रदेश सरकार, केन्द्रीय सरकार या किसी राज्य सरकार की नीति की आलोचना नहीं करेगा।
3- इस नियम में दी हुई कोई बात, निम्नलिखित के सम्बन्ध में लागू न होगी –
क- साक्ष्य, जो प्रदेश सरकार, केन्द्रीय सरकार, उत्तर प्रदेश के विधान-मण्डल या संसद द्वारा नियुक्त किसी प्राधिकारी के सामने दी गयी हो, या
ख- साक्ष्य, जो किसी न्यायिक जाँच में दी गई हो।
नियम 9- सूचना का अनधिकृत संचार
सरकारी सेवकों के पास गोपनीय तथा अनेक महत्वपूर्ण दस्तावेज होते हैं। इस नियम के तहत कोई भी सरकारी सेवक प्रत्यक्ष या परोक्ष कोई सरकारी लेख अथवा सूचना किसी अन्य सरकारी सेवक को अथवा अन्य व्यक्ति को, जिसे ऐसा लेख रखने अथवा सूचना पाने का विधिक अधिकार नहीं है, को न तो देगा और न ही उसके पास जाने देगा। इन नियमों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि किसी भी पत्रावली की टीप का उद्धरण नहीं किया जा सकता है। लेकिन कतिपय मामलों में यह देखा गया है कि पत्रावलियों की टिप्पणियाँ कार्यालयों के बाहर चली जाती है, और कभी-कभी तो ये उद्धरण साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत होते हैं। ऐसे सरकारी सेवक जो इस प्रकार के उद्धरण दे रहे हैं, वे इस नियम के उल्लंघन के दोषी हैं।
यदि किसी समय यह पाया जाता है कि इस प्रकार की सूचना राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़ी है, तो संबंधित सेवक शासकीय गुप्त बात अधिनियम 1923 के अन्तर्गत भी दोषी है।
नियम 10 – चन्दे
सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करके ही सरकारी सेवक चिकित्सीय सहायता, शिक्षा या सार्वजनिक उपयोगिता अथवा धर्मार्थ प्रयोजन के लिये चन्दा या वित्तीय सहायता माँग सकता है।
नियम 11- भेंट
कोई सरकारी सेवक बिना शासन की पूर्वानुमति के स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से किसी ऐसे व्यक्ति से, जो उसका निकट संबंधी न हो कोई भेंट अनुग्रह धन या पुरस्कार स्वीकार नहीं करेगा, न ही अपने परिवार के सदस्यों को ऐसी भेंट अनुग्रह धन या भेंट स्वीकार करने की अनुमति देगा।
विशेष अवसरों, यथा विवाह या किसी रीतिक अवसर पर सरकारी सेवक के मूल वेतन का दशांश या उससे कम मूल्य का एक उपहार स्वीकार कर सकते हैं, या परिवार के सदस्यों को इसे स्वीकार करने की अनुमति दे सकते हैं, यद्यपि इस प्रकार की उपहार-प्रवृत्ति को रोकने का भी हर सम्भव प्रयत्न होना चाहिये।
नियम 11-क दहेज
कोई भी सरकारी सेवक न तो दहेज लेगा न उसके देने या लेने के लिये दुष्प्रेरित करेगा और न ही वर-वधू या वर-वधू के माता पिता या उसके संरक्षक से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी दहेज की माँग करेगा।
यदि कोई सरकारी सेवक अपने सरकारी कृत्यों का निर्वहन करते हुये नियमानुसार निर्धारित शुल्क के अतिरिक्त भेंट या अनुग्रह धन या पारितोषिक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लेता है तो वह नियम-11 का ही उल्लंघन नहीं करता वरन् वह भारतीय दण्ड संहिता की धारा-161 तथा 165 तथा भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के धारा-5 का भी दोषी है। सरकारी सेवक यदि अपने दायित्वों/कर्तव्यों के प्रति उपेक्षापूर्ण व्यवहार करता है, तथा दायित्व निर्धारण के क्रम में नियत धनराशि से अधिक माँग करता है तो नियम-11 का उल्लंघन होगा। सरकारी कर्मचारियों द्वारा इस नियम का कड़ाई से पालन करने हेतु कार्मिक विभाग द्वारा 11 मार्च 1986 को अनुदेश जारी किये गये हैं।
नियम 12- समाप्त
नियम 13- समाप्त
नियम 14- सरकारी सेवक के सम्मान में सार्वजनिक प्रदर्शन
सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त करके ही सरकारी सेवक कोई मान-पत्र या विदाई-पत्र स्वीकार करेगा।
नियम 15- गैरसरकारी व्यापार या नौकरी
कोई सरकारी सेवक सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्ण स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: किसी व्यापार या कारोबार में नहीं लगेगा और न ही कोई नौकरी करेगा।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी सेवक, इस प्रकार की स्वीकृति प्राप्त किये बिना कोई सामाजिक या धर्मार्थ प्रकार का अवैतनिक कार्य या कोई साहित्यिक, कलात्मक या वैज्ञानिक प्रकार का आकस्मिक कार्य कर सकता है लेकिन शर्त यह है कि इस कार्य के द्वारा उसके सरकारी कर्तव्यों में कोई अड़चन नहीं पड़ती है तथा वह ऐसा कार्य हाथ में लेने से एक महीने के भीतर ही, अपने विभागाध्यक्ष को और यदि स्वयं विभागाध्यक्ष हो तो सरकार को सूचना दे दे, किन्तु यदि सरकार उसे इस प्रकार का कोई आदेश दे, तो वह ऐसा कार्य हाथ में नहीं लेगा और यदि उसने हाथ में ले लिया है तो बन्द कर देगा।
किन्तु अग्रेतर प्रतिबन्ध यह है कि किसी सरकारी सेवक के परिवार के किसी सदस्य द्वारा गैरसरकारी व्यापार या गैरसरकारी नौकरी हाथ में लेने की दशा में ऐसे व्यापार या नौकरी की सूचना सरकारी सेवक द्वारा सरकार को दी जायेगी।
नियम 15-क (उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारियों की आचरण (संशोधन) नियमावली 2002)
कोई सरकारी सेवक चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे के किसी परिसंकटमय कार्य में न तो नियोजित करेगा, न लगाएगा या ऐसे बच्चे से बेगार या इसी प्रकार अन्य बलात श्रम नहीं लेगा।
नियम 16- कम्पनियों का निबन्धन, उन्नयन एवं प्रबन्ध
कोई सरकारी कर्मचारी सिवाय उस दशा के, जब तक उसने सरकार की पूर्व अनुमति न प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे बैंक या अन्य कम्पनी के निबन्धन, परिवर्तन या प्रबन्धन में भाग न लेगा जो इण्डियन कम्पनी ऐक्ट 1913 के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन निबद्ध हुआ हो।
नियम 17- बीमा कारोबार
कोई भी सरकारी सेवक अपनी पत्नी को या अपने किसी अन्य संबंधी को जो या तो उस पर पूर्णत: आश्रित हो या उसके साथ निवास करता हो, उसी जिले में, जिसमें वह तैनात हो, बीमा अभिकर्ता के रूप में कार्य करने की अनुमति नहीं देगा।
नियम 18- अवयस्कों का संरक्षकत्व
कोई सरकारी कर्मचारी समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त किये बिना, उस पर आश्रित किसी अवयस्क के अतिरिक्त किसी अवयस्क (Minor) के शरीर या सम्पत्ति के विधिक संरक्षक के रूप में कार्य नहीं करेगा। आश्रित का तात्पर्य पत्नी, बच्चों तथा सौतेले बच्चों और बच्चों के बच्चे, बहने, भाई तथा उनके बच्चों से है जो सरकारी सेवक पर आश्रित हों।
नियम 19- किसी सम्बन्धी के विषय में कार्यवाही
सरकारी सेवक के सामने कभी-कभी उनके सम्बन्धियों व रिश्तेदारों के मामले भी आते हैं। उदाहरण के लिए किसी सरकारी सेवक को ही उसका रिश्तेदार अनुदान के लिए आवेदन पत्र देता है या प्रार्थना पत्र पर अन्तिम कार्यवाही सरकारी सेवक को करनी है। ऐसी कार्यवाहियों को दो भागों में बांटा जा सकता है –
- ऐसी कार्यवाही जिसमें सरकारी सेवक को अपना प्रस्ताव अथवा मत प्रस्तुत करना है लेकिन अन्तिम निर्णय वरिष्ठ अधिकारी द्वारा दिया जाना है। ऐसी स्थिति में सरकारी सेवक ऐसे प्रस्ताव अथवा मत की कार्यवाही नियमानुसार करेगा लेकिन यह बात भी स्पष्ट रूप से बता देगा कि उस व्यक्ति विशेष का उससे क्या सम्बन्ध है और उस सम्बन्ध का स्वरूप क्या है।
- यदि सरकारी सेवक ऐसे प्रस्ताव पर अन्तिम निर्णय करने की शक्ति रखता है तो ऐसी स्थिति में अपने सम्बन्धी के प्रस्ताव पर चाहे वह सम्बन्धी दूर का हो अथवा निकट का और उस व्यक्ति विशेष पर अनुकूल प्रभाव पड़ता हो अथवा प्रतिकूल, वह काई निर्णय नहीं लेगा बल्कि उस मामले को अपने वरिष्ठ अधिकारियों को प्रेषित करेगा। प्रस्तुत करने के कारणों, एवं उस व्यक्ति से सम्बन्ध व स्वरूप को स्पष्ट भी किया जाएगा।
सरकारी सेवक द्वारा अपने किसी नातेदार के सम्बन्ध में की गयी कार्यवाही भले ही निष्पक्ष क्यों न हो, आलोचना का विषय अवश्य हो सकती है। यह भी सम्भव हो सकता है कि सरकारी सेवक अपने नातेदारों और रिश्तेदारों के लिये निष्पक्षता दिखने में अधिक तत्परता से काम करें और अपने नातेदारो व रिश्तेदारों के प्रति उतना कुछ करने से भी इन्कार कर दें जितना हक हो। इस प्रकार नातेदार बिना किसी दोष के न्याय से वंचित हो सकते हैं। अत: यह नियम बनाया गया है कि प्रस्ताव भेजते समय सरकारी सेवक इस बात का उल्लेख करें कि यह मामला उनके रिश्तेदार का है और रिश्तेदारों का स्वरूप क्या है। इससे वरिष्ठ अधिकारी वस्तुनिष्ठ तरीके से मामले में अन्तिम निर्णय दे सकते हैं।
नियम 20- सट्टा लगाना
कोई सरकारी सेवक, किसी विनिवेश में सट्टा नहीं लगाएगा।
नियम 21- विनिवेश
कोई सरकारी सेवक, न तो कोई पूँजी इस प्रकार स्वयं लगायेगा और न ही अपनी पत्नी या अपने परिवार के सदस्य को लगाने देगा, जिससे उसके सरकारी कर्तव्यों के परिपालन में उलझन या प्रभाव पड़ने की संभावना हो। कोई पूँजी या प्रतिभूति उक्त प्रकार की है अथवा नहीं इसका निर्णय सरकार द्वारा किया जायेगा।
नियम 22- उधार देना अथवा उधार लेना
कोई सरकारी सेवक, सिवाय उस दशा के जब कि उसने समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसके पास उसके प्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर, कोई भूमि या बहुमूल्य सम्पत्ति हो, रूपया उधार नहीं देगा और न किसी व्यक्ति को ब्याज पर रूपया उधार देगा।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी, किसी सरकारी नौकर को, अग्रिम रूप से वेतन दे सकता है, या इस बात के होते हुए भी कि ऐसा व्यक्ति (उसका मित्र या सम्बन्धी) उसके प्राधिकार की स्थानीय सीमाओं के भीतर कोई भूमि रखता है, वह अपने किसी जाति, मित्र य सम्बन्धी को, बिना ब्याज के, एक छोटी रकम वाला ऋण दे सकता है।
2- कोई सरकारी कर्मचारी, सिवाय किसी बैंक, सहकारी समिति या अच्छी साख वाले फर्म के साथ साधारण व्यापार क्रम के अनुसार न तो किसी व्यक्ति से, अपने स्थानीय प्राधिकार की सीमाओं के भीतर रूपया उधार लेगा, और न अन्यथा, अपने को ऐसी स्थिति में रखेगा, जिससे वह उस व्यक्ति के वित्तीय आभार (Pecuniary obligaton) के अन्तर्गत हो जाय, और न वह सिवाय उस दशा के जब कि उसने समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, अपने परिवार के किसी सदस्य को, इस प्रकार का व्यवहार करने की अनुमति देगा।
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी कर्मचारी किसी मित्र या सम्बन्धी से बिना ब्याज वाली एक छोटी रकम का एक नितान्त अस्थायी ऋण स्वीकार कर सकता है या किसी वास्तविक व्यापारी के साथ उधार लेखा चला सकता है।
3- जब कोई सरकारी कर्मचारी, इस प्रकार के किसी पद पर नियुक्त या स्थानान्तरण पर भेजा जाय, जिसमें उसके द्वारा उप नियम-1 या उप नियम-2 के किसी उपबन्धों का उल्लंघन निहित हो, तो वह तुरन्त ही समुचित प्राधिकारी को उक्त परिस्थितियों की रिपोर्ट भेज देगा, और उसके बाद ऐसे आदेशों के अनुसार कार्य करेगा जिन्हें समुचित प्राधिकारी दे।
4- ऐसी सरकारी कर्मचारियों की दशा में, जो राजपत्रित अधिकारी हैं, समुचित प्राधिकारी सरकार होगी और दूसरे मामलों में, कार्यालयाध्यक्ष समुचित प्राधिकारी होगा।
नियम 23- दिवालियापन एवं आदतन ऋणग्रस्तता
सरकारी कर्मचारी अपने व्यक्तिगत मामलों का ऐसा प्रबन्ध करेगा जिससे वह अभ्यासी ऋणग्रस्तता से या दिवालिया होने से बच सके। ऐसे सरकारी कर्मचारी की, जिसके विरूद्ध उसके दिवालिया होने के सम्बन्ध में कोई विधिक कार्यवाही चल रही हो, चाहिए कि वह तुरन्त ही उस कार्यालय या विभागाध्यक्ष को, जिसमें वह नौकरी कर रहा हो, समस्त तथ्यों से अवगत करा दे।
नियम 24- चल, अचल एवं बहुमूल्य सम्पत्ति
यह नियम सम्पत्ति अर्जित करने तथा उसके विक्रय के सम्बन्ध में है। प्रत्येक सरकारी सेवक के सेवा काल में ऐसे अवसर आयेंयगे जब उनको सम्पत्ति अर्जित करने की अथवा सम्पत्ति बेचने की आवश्यता होगी। सम्पत्ति को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
(1) चल सम्पत्ति- जिसमें साइकिल, टेलीफोन, रेडियो आदि आते हैं।
(2) अचल सम्पत्ति- जिसमें जमीन, मकान, बागान, भवन आदि आते हैं।
चल सम्पत्ति
कोई सरकारी सेवक अपने एक माह के मूल वेतन से अधिक मूल्य की कोई चल सम्पत्ति क्रय अथवा विक्रय करता है अथवा अन्य प्रकार से व्यवहार करता है तो ऐसे व्यवहार की रिपोर्ट क्रय विक्रय अथवा व्यवहार के पश्चात समुचित प्राधिकारी को करेगा किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि कोई सरकारी सेवक, किसी ख्याति प्राप्त व्यापारी या अच्छी साख के अभिकर्ता के अतिरिक्त यदि अन्य व्यापारी के साथ ऐसा क्रय/विक्रय करता है तो इसके लिए समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी। उदाहरण के लिए यदि कोई सरकारी सेवक जिसका मूल वेतन रू0 10,000/- है किसी ऐसी दुकान से जो नियमानुसार टी0वी0 बिक्री का कार्य करती है, से टी0वी0 क्रय करता है जिसकी कीमत रू0 8,000/- है तो वह क्रय करने के पश्चात इसकी सूचना समुचित प्राधिकारी को देगा।
किन्तु यदि सरकारी सेवक इस प्रकार का व्यवहार किसी ऐसी व्यक्ति से करता है जो ख्याति प्राप्त व्यापारी अथवा अच्छी साख के अभिकर्ता के अतिरिक्त कोई अन्य व्यक्ति है तो ऐसी दशा में यह व्यवहार समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति से ही किया जा सकता है। उदाहरण के लिये यदि कोई सेवक जिसका मूल वेतन 10,000/- है किसी व्यक्ति से कोई टी0वी0 क्रय करता है, जिसकी कीमत रू0 8000 है तो वह ऐसा क्रय समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति के बाद ही करेगा।
अचल सम्पत्ति
सरकारी सेवक सिवाय उस दशा के जबकि समुचित प्राधिकारी को इसकी पूर्व जानकारी हो अपने नाम से अथवा अपने परिवार के किसी सदस्य के नाम से न तो कोई अचल सम्पत्ति क्रय कर सकता है और न ही विक्रय कर सकता है न पट्टा करा सकता है न रेहन रख सकता है, न भेंट कर सकता है अन्यथा किसी प्रकार से हस्तान्तरित नहीं कर सकता है। उदाहरण के लिए यदि कोई सरकारी सेवक लखनऊ विकास प्राधिकरण, आवास विकास परिषद आदि संस्थाओं में मकान बनाने के लिए प्लाट अथवा भूमि या बना बनाया भवन क्रय करना चाहे तो वह ऐसा कार्य समुचित प्राधिकारी की पूर्व जानकारी के पश्चात ही कर सकेगा। यदि सरकारी सेवक उपरोक्त क्रय विक्रय आदि किसी अन्य व्यक्ति संस्था अथवा ख्याति प्राप्त व्यापारी से भिन्न व्यक्ति से करता हो तो समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी। उदाहरण के लिए यदि लखनऊ में चिनहट के पास किसी गाँव में कोई सरकारी सेवक गाँव के किसी काश्तकार से मकान बनाने के लिए भूमि क्रय करना चाहे तो चूंकि गाँव का काश्तकार ख्याति प्राप्त व्यापारी नहीं है, अत: समुचित प्राधिकारी की पूर्व स्वीकृति आवश्यक होगी।
अचल सम्पत्ति के संदर्भ में समुचित प्राधिकारी राज्य सेवा के किसी सरकारी सेवक के प्रसंग में शासन होगा जबकि अन्य सरकारी कर्मचारियों के प्रसंग में विभागाध्यक्ष होंगे।
जब भी कोई सरकारी सेवक प्रथम बार सेवा में नियुक्त होता है तो उन्हें नियुक्त अधिकारी को सामान्य तरीके से ऐसी सभी चल-अचल सम्पत्ति की घोषणा करनी होगी जिसका वह स्वामी है, अथवा जिसे उसने स्वयं अर्जित किया हो, या दान के रूप में प्राप्त किया हो, या जो उसके पास पट्टे या रेहन के रूप में रखी गयी हो। इसी प्रकार वह ऐसी पूँजी व हिस्सों की भी स्वयं घोषणा करेगा जो उसकी पत्नी अथवा उसके साथ रहने वाले किसी भी प्रकार से, आश्रित परिवार के सदस्य द्वारा रखी गयी हो अथवा अर्जित की गयी हो। तत्पश्चात वह यह सूचना प्रत्येक पाँच वर्षों की अवधि बीतने पर भी देगा। इन घोषणाओं में सम्पत्ति, हिस्सों और अन्य लगी हुई पूंजियों के ब्यौरे भी दिये जाने चाहिए।
समुचित प्राधिकारी सामान्य अथवा विशेष आज्ञा द्वारा किसी भी समय किसी सरकारी सेवक को यह आदेश दे सकता है कि वह निर्दिष्ट अवधि के अन्दर ऐसी चल व अचल सम्पत्ति का, जो उसके पास अथवा उसके परिवार के किसी सदस्य के पास रही हो, या अर्जित की गयी हो का सम्पूर्ण विवरण पत्र प्रस्तुत करें तथा साथ ही उन साधनों के ब्यौरे भी उपलब्ध करें जिनके द्वारा सम्पत्ति अर्जित की गयी थी।
शासन की मंशा यह नही कि सरकारी सेवक सम्पत्ति अर्जित न करे, केवल यह उद्देश्य है कि अर्जित की गयी सम्पत्ति उसके द्वारा विधिसम्मत अर्जित आय की सीमा के अन्दर ही हो।
नियम 25 – सरकारी सेवकों के कार्यों तथा चरित्र का प्रतिसमर्थन
कोई भी सरकारी सेवक, सिवाय उस दशा के जबकि उसने सरकार की पूर्व स्वीकृति प्राप्त कर ली हो, किसी ऐसे सरकारी कार्य का, जो प्रतिकूल आलोचना या मानहानिकारी आक्षेप का विषय बन गया हो, प्रतिसमर्थन करने के लिए, किसी समाचार पत्र की शरण न लेगा।
नियम 26 – विज्ञप्ति संख्या 3110 /2 -बी -32 -52 , दिनांक 13 अगस्त 1960 द्वारा समाप्त किया गया।
नियम 27 – सेवा सम्बन्धी मामलों में गैर सरकारी एवं बाहय प्रभाव
कोई भी सरकारी सेवक अपनी सेवा से सम्बन्धित अपने हितों के संबंध में किसी मामले में कोई राजनीतिक अथवा अन्य वाहय साधनों से न तो स्वयं अथवा अपने कुटुम्ब के किसी सदस्य द्वारा कोई प्रभाव डालेगा या प्रभाव डलवाने का प्रयास करेगा। कभी-कभी सरकारी सेवक अपने, स्थानान्तरण, प्रोन्नति आदि के सम्बन्ध में माननीय विधायक सांसद अथवा अन्य व्यक्तियों द्वारा दबाव डलवाने का प्रयास करते हैं। आचरण नियमावली में इस बात की पूरी तरह मनाही है। इसी नियम से सम्बद्ध अधोलिखित नियम 27-क है।
उदाहरण-“क” एक सरकारी कर्मचारी है और “ख”, “क” के कुटुम्ब का एक सदस्य है, “ग” एक राजनीतिक दल है और “ग” के अर्न्तगत “घ” एक संगठन है। “ख” ने “ग” में पर्याप्त ख्याति प्राप्त कर ली और “घ” में एक पदाधिकारी हो गया। “घ” के द्वारा “ख” ने “क” की बात का समर्थन करना प्रारम्भ किया। यहां तक कि “ख” ने “क” के उच्च अधिकारियों के विरुद्ध संकल्य प्रस्तुत किया। “ख” का यह कार्य उपर्युक्त नियम के उपबन्धों का उल्लंधन होगा और उसके सम्बन्ध में यह समझा जायेगा कि वह “क” की प्रेरणा या उसकी मौन स्वीकृति से किया गया है, जब तक कि “क” यी न प्रमाणित कर दे कि ऐसा नही था।
नियम 27-क कोई सरकारी सेवक सिवाय उचित माध्यम अथवा ऐसे निर्देशों के अनुसार जो समय-समय पर जारी किये गये है व्यक्तिगत रूप से अपने या परिवार के किसी सदस्य के माध्यम से सरकार अथवा किसी अन्य प्राधिकारी को कोई अभ्यावेदन नहीं करेगा। नियम 27 का स्पष्टीकरण इस नियम पर भी लागू होगा। कभी-कभी सरकारी सेवक बाहरी प्रभाव का प्रयोग स्वयं नहीं करते अथवा अभ्यावेदन स्वयं नही देते हैं लेकिन उनके परिवार के सदस्य इस प्रकार का प्रभाव डलवाते हैं या अभ्यावेदन देते हैं। इस नियम में स्पष्ट किया गया है कि जब तक बात विपरीत प्रमाणित नहीं हो जाए यह माना जायेगा कि ऐसा कार्य सरकारी सेवक की प्रेरणा या मौन स्वीकृति से किया गया है।
नियम 28 – अनाधिकृत वित्तीय व्यवस्थाएँ
कोई सरकारी कर्मचारी किसी अन्य सरकारी कर्मचारी के साथ या किसी अन्य व्यक्ति के साथ कोई ऐसी वित्तीय व्यवस्था नहीं करेगा जिसमें दोनों में से किसी एक को या दोनों को ही अनाधिकृत रूप से या तत्पसमय प्रवृत्त किसी नियम के विशिष्ट या ध्वनित उपबन्धों के विरूद्ध किसी प्रकार का लाभ हो।
नियम 29 – बहु-विवाह
- कोई सरकारी कर्मचारी, जिसकी एक पत्नी जीवित है, इस बात के होते हुए भी कि तत्समय उस पर लागू किसी वैयक्तिक विधि के अधीन उसे इस प्रकार की बाद की दूसरी शादी की अनुमति प्राप्त है, बिना सरकार की पूर्व अनुमति प्राप्त किये, दूसरा विवाह नहीं करेगा।
- कोई महिला सरकारी कर्मचारी, बिना सरकार की पूर्व अनुमति के, ऐसे व्यक्ति से जिसकी एक पत्नी जीवित हो, विवाह नहीं करेगी।
नियम 30 – सुख सुविधाओं का समुचित उपयोग
इस नियम में इस बात का उल्लेख किया गया है कि सरकारी सेवक ऐसी सुख सुविधा का दुरूपयोग नहीं करेगा और न ही उनका असावधानी के साथ प्रयोग करेगा जिनकी व्यवस्था सरकार ने उसके सरकारी कर्तव्यों के पालन में उसे सुविधा पहुँचाने के प्रयोजन से की हो।
नियम 31 – क्रय का मूल्य देना
कोई सरकारी सेवक, उस समय तक जब तक किस्तों में मूल्य देना प्रथानुसार या विशेष रूप से उपबन्धित न हो या जब तक किसी सद्भावी व्यापारी के पास उसका उधार-लेखा न खुला हो, उन वस्तुओं का, जिसे उसने खरीदा, चाहे ये खरीददारियाँ उसने दौरे पर या अन्यथा की हों, तुरंत पूर्ण मूल्य देने से मना नहीं करेगा।
नियम 32 – बिना मूल्य दिए सेवाओं का उपयोग करना
इस नियम में इस बात का उल्लेख किया गया है कि बिना मूल्य दिये कोई सरकारी सेवक किसी सेवा अथवा आमोद का स्वयं प्रयोग नहीं करेगा जिसके लिये कोई शुल्क अथवा मूल्य दिया जाता है। उदाहरण के लिए सरकारी सेवक बिना टिकट क्रय किए सिनेमा हाल में फिल्म नहीं देख सकते हैं। लेकिन ऐसे उदाहरण हो सकते हैं जहाँ पर सरकारी सेवक नि:शुल्क फिल्म ही नहीं देखते वरन् आमोद-कर भी सरकार को नही देते हैं। इस प्रकार वह दुराचरण करते हैं।
नियम 33 – दूसरों के गैर सरकारी वाहन का उपभोग
कोई सरकारी सेवक, सिवाय बहुत ही विशेष परिस्थितियों के होने की दशा में, किसी ऐसी सवारी गाड़ी को प्रयोग में नहीं लाएगा जो किसी असरकारी व्यक्ति की हो या किसी ऐसे सरकारी सेवक की हो जो उसके अधीन हो।
नियम 34 – अधीनस्थों के माध्यम से क्रय
कोई सरकारी कर्मचारी, किसी ऐसे सरकारी कर्मचारी से, जो उसके अधीन हो, अपनी ओर से या अपनी पत्नी या अपने परिवार के अन्य सदस्य की ओर से, चाहे अग्रिम भुगतान करने पर या अन्यथा, उसी शहर में या किसी दूसरे शहर में, खरीददारियां करने के लिए न तो स्वयं कहेगा और न अपनी पत्नी को या अपने परिवार के किसी अन्य सदस्य को जो उसके साथ रह रहा हो, कहने की अनुमति देगा। अधिसूचना संख्या-9/7/78-कार्मिक-1, दिनांक 20 नवम्बर, 1980 द्वारा चपरासियों के माध्यम से भी क्रय विक्रय कराने की सुविधा पर प्रतिबन्ध लगाया गया है।
नियम 35 – निर्वचन
यदि इन नियमों के निर्वाचन से संबंधित कोई प्रश्न उठ खड़ा हो तो उसे सरकार के पास भेज देना चाहिए और उस पर सरकार का जो भी निर्णय होगा, वह अंतिम होगा।
नियम 36 – निरसन एवं अपवाद
इन नियमों के प्रवृत्त होने के ठीक पूर्व कोई भी नियम, जो इन नियमों के प्रतिस्थानी थे एवं जो उत्तर प्रदेश के नियंत्रण के अधीन सरकारी सेवकों पर लागू होते थे, एतदद्वारा निरस्त किए जाते हैं।