अवकाश का प्रारम्भ और समाप्ति :
मूल नियम 68 के अनुसार अवकाश साधारणतया उस दिन से प्रारम्भ होता है, जिस दिन कार्यभार हस्तान्तरित किया जाता है, और उस दिन समाप्त होता है, जो कार्यभार पुनः ग्रहण किये जाने के दिन का पूर्ववर्ती दिन हो।जब भारत से बाहर लिए गए अवकाश से लौटने पर सरकारी कर्मचारी को कार्यभार प्रदान किया जाता है , तो उसके अवकाश का अंतिम दिन उस दिन के पूर्व वाला दिन होता है,जिस दिन जहाज, जिससे वह लौटता है,अपने बंदरगाह पर लंगर डाले या यदि वह वायु मार्ग से लौटता है ,तो वह दिन,जिसको वायुयान भारत से पहले नियत हवाई अड्डे पर पहुंचे ।
अवकाश के प्रारम्भ के सम्बन्ध में राज्यपाल द्वारा सहायक नियम 38 निर्मित किया गया है, जिसमें निम्नलिखित प्रावधान किया गया है ;–
जब वह दिन छुट्टी या छुट्टी की श्रृंखला का एक दिन हो, जिस दिन के तुरन्त पूर्व सरकारी कर्मचारी का अवकाश प्रारम्भ हुआ हो या जिसके तुरन्त बाद उसका अवकाश या कार्यग्रहण काल समाप्त हो, तो सरकारी कर्मचारी सक्षम प्राधिकारी की अनुमति से उस छुट्टी या छुट्टियों की श्रृंखला के पहले दिन कार्यालय के समय के समाप्त होने पर अपने स्थान को छोड़ सकता है।
अवकाश पर प्रतिबन्ध :
मूल नियम 69 के अनुसार अवकाश पर रहते हुए कोई सरकारी कर्मचारी कोई सेवा नहीं कर सकता या कोई रोजगार स्वीकार नहीं कर सकता–
- (क) यदि प्रस्तावित सेवा का रोजगार एशिया से कहीं बाहर है, तो राज्य के सचिव की पूर्व अनुमति के बिना
- (ख) यदि प्रस्तावित सेवा या रोजगार भारत से बाहर एशिया के अन्दर है, तो राज्यपाल की पूर्व अनुमति के बिना,
- (ग) यदि प्रस्तावित सेवा या रोजगार भारत में ही है, तो राज्यपाल या किसी अन्य ऐसे अधीनस्थ प्राधिकारी की अनुमति के बिना जिसे उसे नियुक्त करने का अधिकार हो :
किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि इस नियम के अन्तर्गत सेवानिवृत्ति के पूर्व लिए गए अवकाश के पूर्व लिए गए अवकाश में यदि किसी सरकारी कर्मचारी को कोई सेवा करने या रोजगार स्वीकार करने की अनुमति दे दी गई है, तो उसे राज्यपाल की या किसी ऐसे अधीनस्थ प्राधिकारी की विशिष्ट सहमति के बिना सेवा निवृत्ति पर जाने की अनुमति के लिए की गई प्रार्थना को वापस लेने तथा कर्त्तव्य पर लौटने से रोक दिया जाएगा।
यह नियम आकस्मिक साहित्यिक कार्य या परीक्षक के रूप में सेवा या ऐसे अन्य कार्य पर लागू नहीं होता।
महत्वपूर्ण शासनादेश
आकस्मिक अवकाश के आरंभ या अंत में छुट्टियों या अन्य आकार्य(non working days) का जोड़ा जाना
अवकाश स्वीकृत करने के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रावधान किया गया है :–
सहायक नियम 101 के अनुसार उस सरकारी कर्मचारी को अवकाश स्वीकृत नहीं किया जाना चाहिए,जिसे दुराचरण या सामान्य अरक्षता के कारण सेवा से पृथक करना हो, यदि ऐसे अवकाश का प्रभाव यह हो कि सेवा से उसके पृथककरण की तिथि स्थगित हो जाय या जिसका आचरण उसी समय या निकट भविष्य में उसके विरुद्ध विभागीय जांच का विषय बनने वाला हो।
सहायक नियम 106 के अनुसार राजपत्रित सरकारी कर्मचारी को उसको अनुमन्य अवकाश पर महालेखाकार की रिपोर्ट प्राप्त किये बिना.अवकाश नहीं प्रदान करना चाहिए। अराजपत्रित सरकारी कर्मचारी के सम्बन्ध में महालेखाकार से ऐसी रिपोर्ट मँगाने की आवश्यकता नहीं है।
सहायक नियम 99-क के उपनियम (1) के अनुसार जब कोई सरकारी कर्मचारी औसत वेतन के अवकाश से लौटता है, तो अत्यन्त असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर उसे कर्त्तव्य पर वापस आने के तीन मास के भीतर अवकाश नहीं प्रदान किया जाना चाहिए, यदि दोनों औसत वेतन के अवकाश की अवधि 180
दिनों [जो मूल नियम 81 (ख) तथा सहायक नियम 157 (क) द्वारा नियत है] से अधिक होती है। फिर भी यह अवकाश स्वीकृत करने वाले प्राधिकारी के विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वे यह निर्णय करे कि किसी विशेष मामले की परिस्थिति असाधारण है या नही।जब इस प्रकार का कोई अवकाश विशेष रूप से स्वीकृत किया जाए , तब अवकाश स्वीकृत करने वाले प्राधिकारी को कारणों को अभिलिखित करना चाहिए तथा एक प्रतिलिपि महालेखाकार को भेजना चाहिए।
उक्त नियम के उपनियम (2) के अनुसार जब कोई सरकारी कर्मचारी अकेले या औसत वेतन के अवकाश के साथ संयुक्त करने के लिए दीर्घावकाश का उपयोग करने के बाद लौटता है और कर्त्तव्य पर आने के तीन मास के अन्दर ही औसत वेतन पर अवकाश के लिए आवेदन देता है और मांगे गये औसत वेतन के अवकाश और पहले से उपभुक्त दीर्घावकाश और उसके साथ, यदि कोई औसत बेतन पर भी अवकाश लिया गया हो, तो उसे अवकाश नहीं प्रदान किया जाना चाहिए, यदि अवकाश की अवधि 180 दिनों से अधिक
उक्त नियम के उपनियम (3) के अनुसार यदि कोई सरकारी कर्मचारी दीर्घावकाश ही लिया हो या दीर्घावकाश के साथ अर्जित अवकश भी लिया हो और अर्जित अवकाश के लिए पुनः आवेदन किया हो, तो केवल अत्यधिक असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर और अधिक अर्जित अवकाश प्रदान नहीं किया जाना