इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल अपराध की सजा के आधार पर किसी सरकारी सेवक की बर्खास्तगी नहीं की जा सकती है । ऐसा करने के लिए विभागीय जांच की आवश्यकता होती है।
सरकारी सेवक की बर्खास्तगी केवल जांच के ही बाद
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 20 जुलाई, 2023 को एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस सम्बंध में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 311(2) के अंतर्गत किसी राजकीय कर्मचारी को बिना विभागीय जांच के सेवा से बर्खास्त ( Terminate ) या पदावनत (Demotion) नही किया जा सकता है । यह आदेश न्यायाधीश मंजीव शुक्ल की कोर्ट ने पारित किया। याची की ओर से उनके वकील धनंजय कुमार मिश्र ने इस आदेश को रद्द करने की मांग की थी।
कोर्ट ने कहा कि यह व्यवस्था न केवल सरकारी सेवकों के अधिकारों की रक्षा के लिए है, बल्कि यह यह सुनिश्चित करने के लिए भी है कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से बर्खास्त नहीं किया जाए।
इस मामले में, कानपुर देहात के एक सहायक अध्यापक व याची मनोज कुमार कटियार की नियुक्ति 1999 में प्राइमरी स्कूल सराय में सहायक अध्यापक पद पर हुई थी। 2009 में उनके खिलाफ दहेज हत्या का केस दर्ज हुआ। सत्र अदालत ने उन्हें दोषी करार दिया और उम्रकैद की सजा सुनाई। इसके बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी कानपुर देहात ने उन्हें बर्खास्त कर दिया।
याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट में चुनौती दी कि बिना विभागीय जांच के किसी भी सरकारी सेवक की बर्खास्तगी आदेश अवैध है। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 311(2) के तहत किसी सरकारी सेवक की बर्खास्तगी करने से पहले विभागीय जांच जरूरी है। बिना जांच के उनके खिलाफ बर्खास्तगी आदेश अवैध है।
कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका को स्वीकार करते हुए बर्खास्तगी आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कहा कि विभाग को दो महीने के भीतर विभागीय जांच पूरी करनी होगी और उसके बाद नए सिरे से बर्खास्तगी आदेश पारित करना होगा।
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की सेवा बहाली और सेवा परिलाभ नए आदेश पर निर्भर करेगा।
यह फैसला सरकारी सेवकों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है। यह सुनिश्चित करता है कि केवल अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने के बाद ही किसी सरकारी सेवक की बर्खास्तगी का आदेश दिया जा सकता है।
इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि विभागीय जांच एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को गलत तरीके से बर्खास्त नहीं किया जाए।
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