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Lockdown के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने का मामला।

54 दिनों के Lockdown के दौरान कामगारों को पूरा वेतन देने की केंद्र की अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियोक्ता और कर्मचारियों को आपस में बातचीत करनी चाहिए. अपने फैसले को जारी रखते हुए कोर्ट ने कहा कि वेतन ना देने वाले नियोक्ता के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार लॉकडाउन के दौरान मजदूरी के पूर्ण भुगतान का निर्देश देने वाली केंद्र की 29 मार्च की अधिसूचना को न समझकर, कर्मचारी और नियोक्ता को आपस में बैठकर इस विवाद को निपटाना चाहिए.

इसके अलावा अन्य याचिका कई उद्योगों की तरफ से दाखिल गई है, जिसमें कहा गया था कि आवश्यक सेवा से जुड़े उद्योगों को Lockdown में काम करने की इजाजत दी गई, लेकिन सभी कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के आदेश का फायदा उठाकर ज़्यादातर कर्मचारी काम पर नहीं आ रहे हैं. ऐसे में कोरोना के दौरान पहले से संकट का सामना कर रहे उद्योगों को उन्हें पूरा वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए.“

कोर्ट के इस फैसले से निजी नियोक्ताओं, कारखानों और उद्योगों को बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने साफ कर दिया कि सरकार निजी नियोक्ताओं के खिलाफ कोई कठोर कदम नहीं उठाएगी जो तालाबंदी के दौरान श्रमिकों को मजदूरी देने में विफल रहे. कोर्ट के फैसले के अनुसार राज्य सरकार के श्रम विभागों द्वारा वेतन भुगतान की सुविधा के संबंध में कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच बातचीत होनी चाहिए. 

कामगारो को 54 दिन के Lockdown की मजदूरी के भुगतान के लिए बातचीत करनी होगी. बता दें कि केंद्र ने 29 मार्च की वैधानिकता पर जवाब दाखिल करने के लिए 4 और सप्ताह दिया था. जिसमें मजदूरी के अनिवार्य भुगतान का आदेश दिया गया था. 

कोर्ट ने कहा कि यह विवादित नहीं हो सकता है कि उद्योग और मजदूर दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है.  50 दिनों के लिए मजदूरी के भुगतान के विवादों को हल करने का प्रयास किया जाना चाहिए. सभी हितधारकों द्वारा अंतरिम उपायों का लाभ उठाया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि जो निजी नियोक्ता और उद्योग Lockdown के दौरान भुगतान के लिए श्रमिकों के साथ बातचीत करने के इच्छुक हैं, कर्मचारियों के साथ बातचीत शुरू कर सकते हैं.

उन्होंने कहा कि वे नियोक्ता जो Lockdown के दौरान काम कर रहे थे, लेकिन पूरी क्षमता से नहीं, वो बातचीत में भी प्रवेश कर सकते हैं. चल रही बातचीत के लिए कर्मचारियों को बिना किसी पूर्वाग्रह के काम करने की अनुमति दी जा सकती है. 

‘ We directed no coercive action to be taken against employers.Our earlier orders will continue.A detailed affidavit has to be filed by Centre in last week of July.Negotiation b/w employees&employers to be facilitated by State Government labour departments

Justice Bhushan

कंपनी ने दलील दी कि जो कर्मचारी काम कर रहे हैं, वह पूरे वेतन के हकदार हैं. लेकिन जो काम नहीं कर रहे, कंपनी को उनको 30 फ़ीसदी वेतन देने को ही कहा जाना चाहिए. अगर सरकार चाहे तो बाकी 70 फीसदी कर्मचारी बीमा निगम या पीएम केयर्स फंड के पैसों से दे.“ ऐसे ही याचिका कुछ और उद्योगों की तरफ से भी दाखिल की गई थी

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अगली सुनवाई जुलाई के अंतिम सप्ताह में होगी

चीफ जस्टिस भूषण ने सुनवाई के दौरान कहा कि हमने कंपनियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है। इस पर पहले के आदेश जारी रहेंगे। इसके साथ ही कोर्ट ने केंद्र सरकार को 29 मार्च के अपने आदेश की वैधानिकता पर जवाब दाखिल करने के लिए 4 और सप्ताह दिए। केंद्र सरकार द्वारा जुलाई के अंतिम सप्ताह में एक विस्तृत हलफनामा दाखिल किया जाए। कोर्ट ने कहा कि कर्मचारियों और कंपनियों के बीच सुलह के लिए बातचीत का जिम्मा राज्य सरकार के श्रम विभागों को दिया जाता है।

निजी नियोक्ताओं, कारखानों, उद्योगों के खिलाफ सरकार कोई कठोर कदम नहीं उठाएगी, जो Lockdown  के दौरान श्रमिकों को मजदूरी देने में विफल रहे. ये व्‍यवस्‍था देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार के श्रम विभाग वेतन भुगतान के संबंध में कर्मचारियों और नियोक्ताओं के बीच बातचीत करवाएं. मजदूरों को 54 दिन के Lockdown की मजदूरी के भुगतान के लिए बातचीत करनी होगी. उद्योग और मज़दूर संगठन समाधान की कोशिश करें. 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जो अपने स्टाफ़ को वेतन देने में असमर्थता जता रहे कुछ उद्योगों ने दायर की थी. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि Lockdown से जुड़े सरकार के नए नोटिफिकेशन में लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने की शर्त को हटा दिया गया है.

सरकार ने कहा कि निजी कंपनियां Lockdown के दौरान अपने श्रमिकों की वेतन कटौती के लिए स्वतंत्र हैं. उद्योगों के वकीलों ने सरकार के इस कदम को नाकाफी कहा. कुछ याचिकाकर्ताओं ने पूरा वेतन न देने के आदेश का विरोध किया. याचिकाकर्ता का कहना था कि Lockdown में कामकाज बिलकुल ठप पड़ा है, कोई कमाई नहीं है, जेबें ख़ालीपड़ी हैं, कारोबार चला पाना संभव नहीं है, ऐसे में स्टाफ़ की सेलरी कहांं से दें.

लॉकडाउन के दौरान निजी कंपनियों व फ़ैक्टरियों आदि के कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के सरकारी आदेश पर पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने तक कर्मचारियों को पूरा वेतन देने में असमर्थ रहे कंपनी मालिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा कि जब लॉकडाउन शुरू हुआ था तो कर्मचारियों को काम वाली जगह को छोड़कर अपने गृहराज्यों की ओर पलायन करने से रोकने के मंशा के तहत तब अधिसूचना जारी की थी. लेकिन अंततः ये मामला कर्मचारियों और कंपनी के बीच का है और सरकार इसमें दखल नहीं देगी.

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राजस्थान में जिंक खनन से जुड़े निर्माण कार्य करने वाली कंपनी ने कहा है जो मजदूर ड्यूटी कर रहे हैं और जो मज़दूर काम पर नहीं आ रहे हैं, उन्हें एक बराबर दर्जा कैसे दिया जा सकता है? ऐसा करना काम करने वाले मजदूरों के साथ भेदभाव होगा.“ कंपनी की तरफ से यह दलील रखी गई कि उद्योग काम बंद हो जाने के चलते पहले ही संकट का सामना कर रहे हैं. ऐसे में जिन उद्योगों ने विशेष अनुमति के बाद काम करना शुरू कर दिया है.

उन्हें सभी कर्मचारियों का वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. काम पर न आने वालों के वेतन में कटौती का आदेश बांबे हाई कोर्ट ने दिया है. उसे पूरे देश में लागू करना चाहिए.“